More than half of Africa’s 54 nations are now pursuing some form of anti-plastic legislation. Amongst these how has Rwanda, a country with a particularly troubled history, become informally known as one of the cleanest on the planet?
Rwanda was one of the first of its neighbours to take up the fight against plastic pollution, implementing a ban on some single use plastics as early as 2008. Moreover it seems to have succeeded in infusing a love of clean cities, clean water and clean land into the popular consciousness via officially sanctioned initiatives including formalized community service days on the last Saturday of each month, a large part of which work comprises waste collection. This custom of “Umuganda” is led from the top, with politicians and community leaders rolling up their sleeves and playing their part. Public participation is not merely encouraged but enforced, with police empowered to fine any able-bodied adult who refuses to take part.
Rwanda’s unique approach to plastic governance is therefore reflective of its unique culture, distinctive approach to politics and the legacy of a turbulent past. In this policy brief drawn from recently concluded research by the Governing Plastics Network‘s partners at the University of Rwanda, we consider the country’s apparent successes in legislating against plastic pollution and look at the challenges it still faces in addressing this wicked problem.
What has Rwanda achieved so far?
Rwanda has adopted various measures to better manage and reduce the use of plastics, including law no 17/2019 of 10/08/2019 prohibiting the manufacturing, importation, use and sale of plastic carry bags and single-use plastic items. The transition to a circular and eco-efficient economy is being promoted through the National Policy on Environment and Climate Change of 2019 and the Green Growth and Climate Resilience Strategy of 2011 and is under revision since 2020.
In addition, a large number of policy instruments – ranging from awareness campaigns to inspections and penalties in the form of fines and confiscation of prohibited plastics– are being applied. The country has also been successful in significantly reducing plastic bag waste by enforcing the law through joint-monitoring and inspection by different institutions (e.g. Rwanda Environment Management Authority, Rwanda National Police, and local administrative entities). The country also uses a range of communication channels to raise awareness about the dangers of plastic pollution. Crucially, effective awareness campaigns have been found to require the use of multiple communication channels, focusing on community-based awareness campaigns (e.g. Umuganda, Umugoroba w’umuryango).
Rwanda also promotes cleaner production through its Cleaner Production & Climate Innovation Centre (CPCIC) which offers advisory services on adoption of cleaner production and climate resilient technologies, helping businesses transition to alternatives.
Nonetheless, there remain a number of limitations to what Rwanda has been able to achieve:
1) Current policy and legal frameworks do not cover all plastics.
2) Existing communication strategies only reach a limited proportion of the public.
3) There is a lack of recorded data on enforcement.
4) Efforts to implement alternatives such as recycling and circular economy activities are hampered by a lack of technical and financial resources, an area sorely in need to attention.
5) Tailoring of communication products and channels to specific audiences remains limited.
विकासशील देशों में सिगरेट बट्स, प्लास्टिक कचरों इत्यादि से क्रषि भूमियों, कस्बों की पोखरों, नदियों, पशु-पक्षियों और सार्वजनिकता को सुरक्षित किऐ जाने के लिऐ आवश्यक है कि सार्वजनिक व्यक्तिगत उत्पादन में एकल उपयोग कचरों (प्लास्टिक इत्यादि) के संग्रहण की लम्बी अवधियों से प्रक्रियागत व्यवस्था की क्षमताऐं जुड़ें।
डस्टबीनों, डंम्पिंग जोनों और व्यवस्था में केवल उन्हीं कचरों को आने देना चाहिऐ। जिनका निवासी प्रबंधन, संग्रह नहीं कर सकते। इससे पर्यावरण में हो रही कचरों की लगातार पहुंच में ऐतिहासिक कमी लायी जा सकेगी, सार्वजनिकता में उपस्थित कचरों पर अधिक तेजी से नियंत्रण और कार्य हो सकेंगें।
साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में साफ, सूखे कचरों की उपलब्धता रहने पर प्लास्टिक कचरों से डीजल, ईंटें और अन्य उत्पाद बनाने के अति शूक्ष्म व्यवसायों, रोजगारों में सहायता होगी। शहरी क्षेत्रों में रीसाइक्लिंग इकाइयों, प्रक्रियाओं के लिऐ साफ, सूखे, बेहतर गुणवत्ता के कचरे उपलब्ध होने पर पानी, ऊर्जा की न्यूनतम खपत और गुणवत्तापूर्ण उत्पादन होंगें।
विकासशील देशों में कचरा बीनने वाले लाखों से अधिक लोगों को स्वच्छ कपड़ों, स्वच्छ परिवेश और स्वच्छ जीवनशैली के साथ व्यवस्थागत, निवासियों से साफ, सूखे कचरों की अपेक्षित मात्राओं को लिऐ जाने और प्रक्रियाओं, इकाईयों की क्षमताओं में दिऐ जाने की नैतिक, न्यायपूर्ण, मानवीय, पर्यावरण हितैषी और संम्मान जनक कार्यपद्धति मिलनी चाहिऐ।
सरकारों को रसोई गैस वितरण, राशन वितरण, बिजली के बिल भुगतान और नौकरियों के भुगतान में निवासियों के पास उपलब्ध पुस्तिका में साफ, सूखे कचरों की क्रमानुसार बढ़ी मात्राओं के विवरण दर्ज कराने चाहिऐ। निवासियों को पर्यावरण संरक्षणमय जीवनशैली देनी चाहिऐ। और पर्यावरण, सार्वजनिकता को कचरों से सुरक्षित रखने की नैतिक और मानवीय कार्यपद्धति अनुपालन में लानी चाहिऐ।
दुकानों, व्यवसायों और संस्थानों से जैविक कचरों को नीतिगत तौर पर लिया जाना, इससे खाद बनाया जाना और इसके व्यवसाय संचालित होना आवश्यक है। महत्त्वपूर्ण है।
लेकिन घरेलू आधार पर निवासियों से जैविक कचरों को लिया जाना उन्हें व्यक्तिगत लाभों से वंचित करना है। उन्हें गरीबी की ओर धकेला जाना है। अति गरीबों के लिऐ विकट स्थितियां पैदा करना है।
जैविक कचरों के प्रबंधन की घरेलू प्राथमिकताओं से निवासियों को कुछ सब्जियां, छोटे पौधों के फल उपलब्ध होने चाहिऐ। जिससे बाजार में उपलब्ध कुछ खाद्य वस्तुओं पर दवाब कम हो सकें और अति गरीबों तक ऐसी खाद्य वस्तुओं की पहुंच आसान, सुलभ हो सके।
सरकारों को नियमों, प्रावधानों, प्रोत्साहनों और बाध्यताओं से सभी दुकानों, व्यवसायों और संस्थानों के उत्पादित जैविक, एकल उपयोग कचरों (प्लास्टिक इत्यादि) को प्रक्रियागत, व्यवस्थागत करना चाहिऐ। रासायनिक कचरों के प्रबंधन की नीतिपूर्ण व्यवस्था अनिवार्य करानी चाहिऐ। और एक निवासी, एक घर को पर्यावरण, मानवता के संरक्षणों से जोड़ना चाहिऐ।
पर्यावरण, सार्वजनिकता में धूप, पानी, कीचड़, अधिक तापमान से प्लास्टिक कचरों के उत्सर्जन, बिखराव, रिसाव और शूक्ष्म कणों के टूटने में, अतिरिक्त कचरों को पहुंचने से रोकने में यह कार्यपद्धति अति विशेष अहम है।
विकासशील देशों में सिगरेट बट्स, प्लास्टिक कचरों इत्यादि से क्रषि भूमियों, कस्बों की पोखरों, नदियों, पशु-पक्षियों और सार्वजनिकता को सुरक्षित किऐ जाने के लिऐ आवश्यक है कि सार्वजनिक व्यक्तिगत उत्पादन में एकल उपयोग कचरों (प्लास्टिक इत्यादि) के संग्रहण की लम्बी अवधियों से प्रक्रियागत व्यवस्था की क्षमताऐं जुड़ें।
डस्टबीनों, डंम्पिंग जोनों और व्यवस्था में केवल उन्हीं कचरों को आने देना चाहिऐ। जिनका निवासी प्रबंधन, संग्रह नहीं कर सकते। इससे पर्यावरण में हो रही कचरों की लगातार पहुंच में ऐतिहासिक कमी लायी जा सकेगी, सार्वजनिकता में उपस्थित कचरों पर अधिक तेजी से नियंत्रण और कार्य हो सकेंगें।
साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में साफ, सूखे कचरों की उपलब्धता रहने पर प्लास्टिक कचरों से डीजल, ईंटें और अन्य उत्पाद बनाने के अति शूक्ष्म व्यवसायों, रोजगारों में सहायता होगी। शहरी क्षेत्रों में रीसाइक्लिंग इकाइयों, प्रक्रियाओं के लिऐ साफ, सूखे, बेहतर गुणवत्ता के कचरे उपलब्ध होने पर पानी, ऊर्जा की न्यूनतम खपत और गुणवत्तापूर्ण उत्पादन होंगें।
विकासशील देशों में कचरा बीनने वाले लाखों से अधिक लोगों को स्वच्छ कपड़ों, स्वच्छ परिवेश और स्वच्छ जीवनशैली के साथ व्यवस्थागत, निवासियों से साफ, सूखे कचरों की अपेक्षित मात्राओं को लिऐ जाने और प्रक्रियाओं, इकाईयों की क्षमताओं में दिऐ जाने की नैतिक, न्यायपूर्ण, मानवीय, पर्यावरण हितैषी और संम्मान जनक कार्यपद्धति मिलनी चाहिऐ।
सरकारों को रसोई गैस वितरण, राशन वितरण, बिजली के बिल भुगतान और नौकरियों के भुगतान में निवासियों के पास उपलब्ध पुस्तिका में साफ, सूखे कचरों की क्रमानुसार बढ़ी मात्राओं के विवरण दर्ज कराने चाहिऐ। निवासियों को पर्यावरण संरक्षणमय जीवनशैली देनी चाहिऐ। और पर्यावरण, सार्वजनिकता को कचरों से सुरक्षित रखने की नैतिक और मानवीय कार्यपद्धति अनुपालन में लानी चाहिऐ।
दुकानों, व्यवसायों और संस्थानों से जैविक कचरों को नीतिगत तौर पर लिया जाना, इससे खाद बनाया जाना और इसके व्यवसाय संचालित होना आवश्यक है। महत्त्वपूर्ण है।
लेकिन घरेलू आधार पर निवासियों से जैविक कचरों को लिया जाना उन्हें व्यक्तिगत लाभों से वंचित करना है। उन्हें गरीबी की ओर धकेला जाना है। अति गरीबों के लिऐ विकट स्थितियां पैदा करना है।
जैविक कचरों के प्रबंधन की घरेलू प्राथमिकताओं से निवासियों को कुछ सब्जियां, छोटे पौधों के फल उपलब्ध होने चाहिऐ। जिससे बाजार में उपलब्ध कुछ खाद्य वस्तुओं पर दवाब कम हो सकें और अति गरीबों तक ऐसी खाद्य वस्तुओं की पहुंच आसान, सुलभ हो सके।
सरकारों को नियमों, प्रावधानों, प्रोत्साहनों और बाध्यताओं से सभी दुकानों, व्यवसायों और संस्थानों के उत्पादित जैविक, एकल उपयोग कचरों (प्लास्टिक इत्यादि) को प्रक्रियागत, व्यवस्थागत करना चाहिऐ। और रासायनिक कचरों के प्रबंधन की नीतिपूर्ण व्यवस्था अनिवार्य करानी चाहिऐ। और एक निवासी, एक घर को पर्यावरण, मानवता के संरक्षणों से जोड़ना चाहिऐ।
पर्यावरण, सार्वजनिकता में धूप, पानी, कीचड़, अधिक तापमान से प्लास्टिक कचरों के उत्सर्जन, बिखराव, रिसाव और शूक्ष्म कणों के टूटने में अतिरिक्त कचरों को पहुंचने से रोकने में यह कार्यपद्धति अति विशेष अहम है।