Examples of successful policy change
1. Rwanda Environment Management Authority (REMA)
As a public institution responsible for advising the government on policies, strategies and legislation related to the management of the environment and an enforcing agency, REMA has undertaken various successful initiatives or activities related to plastic pollution prevention, utilising various communication strategies to influence policy and behaviour change.
These have included:
• High-level conference addressing plastic pollution of 29 May 2018.
• Beat plastic pollution walk of 3 June 2018.
• Direct communication with the public during inspection and monitoring of the implementation of the current plastic law (e. g: 10-11 September 2020).
• Collaboration with various public and plastic institutions in the fight against plastic pollution.
• Sensitization of laws and regulations governing plastics among the public using different communication channels: direct presentations, mass media (TV, Radio, etc.)
• REMA played a major role in adoption of Law no 17/2019 of 10/08/2019 relating to the prohibition of manufacturing, importation, use and sale of plastic carry bags and single-use plastic items.
2. Cleaner Production & Climate Innovation Centre (CPCIC)
CPCIC provides policy guidance based on interactions with the private sector especially with regards to regulatory requirements. Some examples include the following:
• CPCIC organized a workshop on “Identified Industrial Symbiotic Exchanges for Circular Economy projects”, 3 March 2021. Its achievements included identifying opportunities for industrial symbiosis related to plastic waste management, eg. turning plastic waste into plastic paves or polythene tubes and PET bottles waste into PET pre-forms.
• CPCIC used various communication channels including direct presentations and discussions, mass media (tv, radio, press), social media (twitter, flikr) and street advertisement (banners). These contributed to legal and policy framework implementation and enforcement, encouraging behaviour change.
विकासशील देशों में सिगरेट बट्स, प्लास्टिक कचरों इत्यादि से क्रषि भूमियों, कस्बों की पोखरों, नदियों, पशु-पक्षियों और सार्वजनिकता को सुरक्षित किऐ जाने के लिऐ आवश्यक है कि सार्वजनिक व्यक्तिगत उत्पादन में एकल उपयोग कचरों (प्लास्टिक इत्यादि) के संग्रहण की लम्बी अवधियों से प्रक्रियागत व्यवस्था की क्षमताऐं जुड़ें।
डस्टबीनों, डंम्पिंग जोनों और व्यवस्था में केवल उन्हीं कचरों को आने देना चाहिऐ। जिनका निवासी प्रबंधन, संग्रह नहीं कर सकते। इससे पर्यावरण में हो रही कचरों की लगातार पहुंच में ऐतिहासिक कमी लायी जा सकेगी, सार्वजनिकता में उपस्थित कचरों पर अधिक तेजी से नियंत्रण और कार्य हो सकेंगें।
साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में साफ, सूखे कचरों की उपलब्धता रहने पर प्लास्टिक कचरों से डीजल, ईंटें और अन्य उत्पाद बनाने के अति शूक्ष्म व्यवसायों, रोजगारों में सहायता होगी। शहरी क्षेत्रों में रीसाइक्लिंग इकाइयों, प्रक्रियाओं के लिऐ साफ, सूखे, बेहतर गुणवत्ता के कचरे उपलब्ध होने पर पानी, ऊर्जा की न्यूनतम खपत और गुणवत्तापूर्ण उत्पादन होंगें।
विकासशील देशों में कचरा बीनने वाले लाखों से अधिक लोगों को स्वच्छ कपड़ों, स्वच्छ परिवेश और स्वच्छ जीवनशैली के साथ व्यवस्थागत, निवासियों से साफ, सूखे कचरों की अपेक्षित मात्राओं को लिऐ जाने और प्रक्रियाओं, इकाईयों की क्षमताओं में दिऐ जाने की नैतिक, न्यायपूर्ण, मानवीय, पर्यावरण हितैषी और संम्मान जनक कार्यपद्धति मिलनी चाहिऐ।
सरकारों को रसोई गैस वितरण, राशन वितरण, बिजली के बिल भुगतान और नौकरियों के भुगतान में निवासियों के पास उपलब्ध पुस्तिका में साफ, सूखे कचरों की क्रमानुसार बढ़ी मात्राओं के विवरण दर्ज कराने चाहिऐ। निवासियों को पर्यावरण संरक्षणमय जीवनशैली देनी चाहिऐ। और पर्यावरण, सार्वजनिकता को कचरों से सुरक्षित रखने की नैतिक और मानवीय कार्यपद्धति अनुपालन में लानी चाहिऐ।
दुकानों, व्यवसायों और संस्थानों से जैविक कचरों को नीतिगत तौर पर लिया जाना, इससे खाद बनाया जाना और इसके व्यवसाय संचालित होना आवश्यक है। महत्त्वपूर्ण है।
लेकिन घरेलू आधार पर निवासियों से जैविक कचरों को लिया जाना उन्हें व्यक्तिगत लाभों से वंचित करना है। उन्हें गरीबी की ओर धकेला जाना है। अति गरीबों के लिऐ विकट स्थितियां पैदा करना है।
जैविक कचरों के प्रबंधन की घरेलू प्राथमिकताओं से निवासियों को कुछ सब्जियां, छोटे पौधों के फल उपलब्ध होने चाहिऐ। जिससे बाजार में उपलब्ध कुछ खाद्य वस्तुओं पर दवाब कम हो सकें और अति गरीबों तक ऐसी खाद्य वस्तुओं की पहुंच आसान, सुलभ हो सके।
सरकारों को नियमों, प्रावधानों, प्रोत्साहनों और बाध्यताओं से सभी दुकानों, व्यवसायों और संस्थानों के उत्पादित जैविक, एकल उपयोग कचरों (प्लास्टिक इत्यादि) को प्रक्रियागत, व्यवस्थागत करना चाहिऐ। रासायनिक कचरों के प्रबंधन की नीतिपूर्ण व्यवस्था अनिवार्य करानी चाहिऐ। और एक निवासी, एक घर को पर्यावरण, मानवता के संरक्षणों से जोड़ना चाहिऐ।
पर्यावरण, सार्वजनिकता में धूप, पानी, कीचड़, अधिक तापमान से प्लास्टिक कचरों के उत्सर्जन, बिखराव, रिसाव और शूक्ष्म कणों के टूटने में, अतिरिक्त कचरों को पहुंचने से रोकने में यह कार्यपद्धति अति विशेष अहम है।
विकासशील देशों में सिगरेट बट्स, प्लास्टिक कचरों इत्यादि से क्रषि भूमियों, कस्बों की पोखरों, नदियों, पशु-पक्षियों और सार्वजनिकता को सुरक्षित किऐ जाने के लिऐ आवश्यक है कि सार्वजनिक व्यक्तिगत उत्पादन में एकल उपयोग कचरों (प्लास्टिक इत्यादि) के संग्रहण की लम्बी अवधियों से प्रक्रियागत व्यवस्था की क्षमताऐं जुड़ें।
डस्टबीनों, डंम्पिंग जोनों और व्यवस्था में केवल उन्हीं कचरों को आने देना चाहिऐ। जिनका निवासी प्रबंधन, संग्रह नहीं कर सकते। इससे पर्यावरण में हो रही कचरों की लगातार पहुंच में ऐतिहासिक कमी लायी जा सकेगी, सार्वजनिकता में उपस्थित कचरों पर अधिक तेजी से नियंत्रण और कार्य हो सकेंगें।
साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में साफ, सूखे कचरों की उपलब्धता रहने पर प्लास्टिक कचरों से डीजल, ईंटें और अन्य उत्पाद बनाने के अति शूक्ष्म व्यवसायों, रोजगारों में सहायता होगी। शहरी क्षेत्रों में रीसाइक्लिंग इकाइयों, प्रक्रियाओं के लिऐ साफ, सूखे, बेहतर गुणवत्ता के कचरे उपलब्ध होने पर पानी, ऊर्जा की न्यूनतम खपत और गुणवत्तापूर्ण उत्पादन होंगें।
विकासशील देशों में कचरा बीनने वाले लाखों से अधिक लोगों को स्वच्छ कपड़ों, स्वच्छ परिवेश और स्वच्छ जीवनशैली के साथ व्यवस्थागत, निवासियों से साफ, सूखे कचरों की अपेक्षित मात्राओं को लिऐ जाने और प्रक्रियाओं, इकाईयों की क्षमताओं में दिऐ जाने की नैतिक, न्यायपूर्ण, मानवीय, पर्यावरण हितैषी और संम्मान जनक कार्यपद्धति मिलनी चाहिऐ।
सरकारों को रसोई गैस वितरण, राशन वितरण, बिजली के बिल भुगतान और नौकरियों के भुगतान में निवासियों के पास उपलब्ध पुस्तिका में साफ, सूखे कचरों की क्रमानुसार बढ़ी मात्राओं के विवरण दर्ज कराने चाहिऐ। निवासियों को पर्यावरण संरक्षणमय जीवनशैली देनी चाहिऐ। और पर्यावरण, सार्वजनिकता को कचरों से सुरक्षित रखने की नैतिक और मानवीय कार्यपद्धति अनुपालन में लानी चाहिऐ।
दुकानों, व्यवसायों और संस्थानों से जैविक कचरों को नीतिगत तौर पर लिया जाना, इससे खाद बनाया जाना और इसके व्यवसाय संचालित होना आवश्यक है। महत्त्वपूर्ण है।
लेकिन घरेलू आधार पर निवासियों से जैविक कचरों को लिया जाना उन्हें व्यक्तिगत लाभों से वंचित करना है। उन्हें गरीबी की ओर धकेला जाना है। अति गरीबों के लिऐ विकट स्थितियां पैदा करना है।
जैविक कचरों के प्रबंधन की घरेलू प्राथमिकताओं से निवासियों को कुछ सब्जियां, छोटे पौधों के फल उपलब्ध होने चाहिऐ। जिससे बाजार में उपलब्ध कुछ खाद्य वस्तुओं पर दवाब कम हो सकें और अति गरीबों तक ऐसी खाद्य वस्तुओं की पहुंच आसान, सुलभ हो सके।
सरकारों को नियमों, प्रावधानों, प्रोत्साहनों और बाध्यताओं से सभी दुकानों, व्यवसायों और संस्थानों के उत्पादित जैविक, एकल उपयोग कचरों (प्लास्टिक इत्यादि) को प्रक्रियागत, व्यवस्थागत करना चाहिऐ। और रासायनिक कचरों के प्रबंधन की नीतिपूर्ण व्यवस्था अनिवार्य करानी चाहिऐ। और एक निवासी, एक घर को पर्यावरण, मानवता के संरक्षणों से जोड़ना चाहिऐ।
पर्यावरण, सार्वजनिकता में धूप, पानी, कीचड़, अधिक तापमान से प्लास्टिक कचरों के उत्सर्जन, बिखराव, रिसाव और शूक्ष्म कणों के टूटने में अतिरिक्त कचरों को पहुंचने से रोकने में यह कार्यपद्धति अति विशेष अहम है।